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ख़ुद की तलाश मेरी मुकम्मल हुई अभी
ग़ुज़रा जो तुझसे होके मेरा कारवां अभी
तस्वीर की मानिंद मुख़ातिब हुए मगर
खुल जाओगे तुम, पहली मुलाक़ात थी अभी
खिलने लगी हैं राहें गुलमोहर के फूलों से
मौसम भी वस्ल-ए-यार में है मेहरबां अभी
पढ़ता रहा चुपचाप तेरे पलकों की सिलवटें
गोया दिल-ए-तबाह की थी इब्तिदा अभी
पैसे न फेंको, मैं महज़ थक के बैठा हूं
सलामत हैं, ऎ दोस्त, मेरे दस्त-ओ-पा अभी
अपने करीबियों से मैं उम्मीद रखता हूं
बचा रखीं हैं थोड़ी बहुत नादानियां अभी
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पैसे न फेंको, मैं महज़ थक के बैठा हूं
सलामत हैं, ऎ दोस्त, मेरे दस्त-ओ-पा अभी
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uff….ye khayal kabhi mere man mein nahi aaya…..
अपने करीबियों से मैं उम्मीद रखता हूं
बचा रखीं हैं थोड़ी बहुत नादानियां अभी
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बचा रखीं हैं थोड़ी बहुत नादानियां अभी हम ने भी 🙂
अपने करीबियों से मैं उम्मीद रखता हूं
बचा रखीं हैं थोड़ी बहुत नादानियां अभी
खूब कहा महाशय …